अन्य स्थल
बहुलावन : बहुलावन ब्रज के
बारह वनों में एक है। श्री हरि की बहुला नाम की पत्नि हमेशा यहाँ
विराजमान रहती हैं। बहुलावनकुण्ड में स्थित पद्मवन में स्नान पान करने
वाले व्यक्ति को बहुत पुण्य प्राप्त होता है क्योंकि भगवान विष्णु
लक्ष्मी जी सहित यहाँ निवास करते हैं। एक बार इस स्थान पर बहुला नामक
एक गाय को शेर ने घेर लिया था। वह उसे मारना चाहता था लेकिन गाय ने शेर
को आश्वादन दिया कि वह अपने बछड़े को दूध पिलाकर लौट आयेगी। इस पर
विश्वास कर सिंह वहाँ खड़ा रहा। कुछ समय पश्चात जब गाय अपने बछड़े को दूध
पिलाकर लौट आई तो शेर गाय के सत्यव्रत से बहुत प्रभावित हुआ, उसने गाय
को छोड़ दिया। यहाँ बलराम कुण्ड एवं मानसरोवर कुण्ड दर्शनीय हैं।
तोषग्राम : यह श्री कृष्ण के
प्रिय सखा तोष का गाँव है। तोष नामक गोप नृत्यकला में बहुत निपुण थे।
श्री कृष्ण जी ने नृत्य की शिक्षा इन्हीं से प्राप्त की थी। यहाँ तोष
कुण्ड है जिसके जल को पीकर ग्वालबाल, गौएँ, श्री कृष्ण-बलराम को बड़ा ही
संतोष होता था। यहाँ गोपालजी तथा राधारमण जी की स्थलियाँ दर्शनीय हैं।
दतिहा : यहाँ श्री कृष्ण जी
ने दन्तवक्र नामक असुर का वध किया था। यहाँ महादेव जी का एक चतुर्भुज
विग्रह है।
गरुड़ गोविन्द : छटीकरा के
पास ही गरुड़ गोविन्द जी का मन्दिर है। एक दिन श्री कृष्ण गोचारण करते
हुए सखाओं के साथ यहाँ विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएं कर रह थे। उन्होंने
श्रीदाम सखा को गरुड़ बनाया और उसकी पीठ पर स्वयं इस प्रकार बैठ गये जैसे
मानो स्वयं लक्ष्मीपति नारायण गरुड़ की पीठ पर सवार हों। यहाँ पर गरुड़
बने हुए श्रीदाम तथा गोविन्द जी का दर्शन होता है।
जसुमती (जसौंदी) : यह
श्रीराधाकुण्ड-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है। श्री कृष्ण की सखी जसुमती
ने यहाँ सूर्य भगवान की उपासना की थी। यहाँ सूर्य कुण्ड दर्शनीय है।
बसोंति(बसति) : यह श्री
कृष्ण की सखी बसुमति का स्थान है। उसने बसंत पंचमी को भगवान की अराधना
की थी। यहाँ बसन्त कुण्ड एवं कदम्ब खण्डी है।
ऐंचादाउजी :
एक बार बलराम जी श्री कृष्ण जी के कहने पर द्वारिका से ब्रज में अपने
मैया और बाबा से मिलने आये। इसके पश्चात उनके मन में महारास की इच्छा
प्रकट हूई तो उन्होंने सभी सखियों को इस स्थल पर बुलाया। लेकिन यमुना
जी नहीं आयीं क्योंकि बलराम जी उनके जेठ लगते थे। तो बलराम जी यमुना जी
को अपने हल से खींचकर यहाँ लाये। तभी से इस स्थान पर यमुना उल्टी बह
रहीं हैं। यमुना जी को हल से खींच कर लाने के कारण ही इसका नाम ऐंचा
दाऊजी पड़ गया।
अक्षय वट :
जब ब्रज में महारास हो रहा था तो सभी देवताओं ने इसे देखने की इच्छा
प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण जी ने उन्हें इस वृक्ष पर विराजमान होकर
रास देखने को कहा। अतः सभी देवता अपने लोकों से रास देखने के लिये इसी
वृक्ष पर विराजमान होते हैं। यह अक्षय वट कृष्णकालीन है एवं सदैव हरा
भरा रहता है। इसे भाण्डीरवट भी कहते हैं। यहाँ पर बल्देव जी ने
प्रलम्बासुर का वध किया था।
चीरघाट : सभी
गोपियाँ मार्गशीर्ष माह में भगवान श्री कृष्ण को वर रूप में पाने के
लिये कात्यायनी देवी जी का व्रत रखती थीं एवं यमुना में स्नान करती थी।
एक बार कृष्ण जी ने उनके वस्त्र हरण कर लिये एवं कदम्ब के वृक्ष पर चढ़
गये। तब सभी गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण से उनके वस्त्र लौटाने को कहा।
तब भगवान श्री कृष्ण जी ने उनको यह शिक्षा दी कि नदी में वरुण देवता का
निवास होता है अतः नदी में निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिये इससे
वरुण देवता का अपमान होता है।
भाण्डीरवन : गर्ग संहिता के अनुसार एक बार नन्दबाबा कन्हैया को
लेकर शाम के समय भ्रमण पर जा रहे थे, रास्ते में अंधेरा होने पर कन्हैया
रोने लगे। बाबा ने उनको चुप कराने की बहुत कोशिश की, तब तक अंधेरा और
घना हो चुका था, फ़िर बाबा श्रीराधाजी का स्मरण करने लगे तो श्री जी अपने
पूर्ण रूप से प्रकट हुई, बाबा ने लाला को श्री जी की गोदी में दे दिया
और श्री जी की स्तुति के बाद वहां से चले आये। उनके जाने के बाद भगवान
अपने किशोर रूप में आ गये, ब्रह्मा जी ने दोनों का विवाह् सम्पन्न कराया।
मांट
गाँव : मांट शब्द का अर्थ दधि मंथन आदि के लिए मिट्टी से निर्मित
बड़े-बड़े पात्रों से है। यह स्थल मांटों (मटका) के निर्माण का केन्द्र
था। यमुना किनारे स्थित मांटवन ब्रज का प्रमुख सघन वन था।
मानसरोवर : एक बार श्री राधा रानी भगवान श्री कृष्ण जी से रूठ कर
यहाँ विराजी थीं। यहाँ उनके नेत्रों के ही दर्शन होते हैं। यहाँ पर दो
कुण्ड हैं मान कुण्ड और कृष्ण कुण्ड। मान कुण्ड श्री राधा रानी जी के
नयनों से प्रवाहित अश्रुओं से बना है। यह स्थान श्री हित हरिवंश जी को
अत्यन्त प्रिय था और वे यहाँ प्रतिदिन आते थे।
कुश
स्थली (कोसी) : यह नन्दराय जी की कोष स्थली है। इसी स्थल को ब्रज की
द्वारिका पुरी कहते हैं। यहाँ पर रत्नाकर सागर, माया कुण्ड तथा गोमती
कुण्ड है।
बेलवन
: श्रीलक्ष्मी जी ने वृन्दावन में महारास देखने की अभिलाषा प्रकट
की। लेकिन उन्हें महारास में प्रवेश नहीं दिया गया। वह आज भी इस स्थल
पर वृन्दावन में महारास देखने के लिये तपस्या कर रही हैं। यहाँ पर पौष
मास के प्रत्येक गुरुवार को मेला लगता है।
फ़ालेन:
यह भक्त प्रह्लाद की जन्मस्थली है।
कामई
: यह अष्ट सखियों में प्रमुख विशखा सखी जी का जन्मस्थान है।
खेलनवन : यहाँ गोचारण के समय श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ
विभिन्न प्रकार के खेल खेलते थे। श्री राधा जी भी यहाँ अपनी सखियों के
साथ खेलने आतीं थीं, इन्हीं सब कारणों से इस स्थान का नाम खेलनवन पड़ा।
बिहारवन : यहाँ पर श्री बिहारी जी के दर्शन और बिहार कुण्ड है। यहाँ
पर रासबिहारी श्री कृष्ण ने राधिका जी सहित गोपियों के साथ रासविहार
किया एवं अनेक लीला-विलास किए थे। श्री यमुना जी के पास यह एक सघन
रमणीय वन है। यहाँ के गौशाला में आज भी कृष्णकालीन गौवंश के दर्शन होते
हैं।
कोकिलावन : एक बार श्री कृष्ण ने कोयल के स्वर में कूह-कूह की ध्वनि
से सारे वन को गुंजायमान कर दिया। कूह-कूह की धुन को श्री राधा जी ने
पहचान लिया कि ये श्री कॄष्ण जी आवाज निकाल रहे हैं। ध्वनि को सुनकर
श्री राधा जी विशाखा सखी के साथ यहाँ आईं, इधर अन्य सखियाँ भी
प्राण-प्रियतम को खोजते हुए पहुँच गयीं। यह श्रीराधा-कृष्ण के मिलन की
भूमि कृष्ण जी द्वारा कोयल की आवाज निकालने के कारण कोकिला वन कहलाई।
यहाँ शनि देव जी का मन्दिर है।
खादिरवन : यह ब्रज के १२ वनों में से एक है। यहाँ श्री
कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ तर-तरह की लीलाएं करते थे। यहाँ पर खजूर के
बहुत वृक्ष थे। यहाँ पर श्री कृष्ण गोचारण के समय सभी सखाओं के साथ पके
हुए खजूर खाते थे। श्री कृष्ण जी ने यहाँ वकासुर नामक असुर का वध किया
था।
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