नन्दगाँव

वृन्दावन सौ वन नहीं, नन्दगाँव सौ गाँव।

बंशीबट सौ बट नहीं, कृष्ण नाम सौ नाम॥

        नन्दगाँव श्री नन्दराय जी एवं उनके पूर्वजों की निवास स्थली रही है। किन्हीं कारणवश वे बाद में गोकुल(महावन) जाकर बस गये। जिस समय श्री कृष्ण भगवान का प्रादुर्भाव हुआ उस समय नन्दराय जी गोकुल में ही रहते थे। श्री नन्दराय जी गोकुल में कंस द्वारा भेजे गये असुरों से भयभीत होकर अपने लाला श्रीकृष्ण-बलराम एवं अन्य गोप समूह, समस्त गौधन को साथ लेकर श्री यमुनाजी के रमणीय तटवर्ती स्थल वृन्दावन होते हुए नन्दगाँव आकर रहने लगे।

श्रीमद्‍भागवत के अनुसार ब्रज प्रमुखतः दो भागों में विभाजित है -

१. वृह्दवन - महावन, मधुवन, तालवन, भद्रवन, कुमुदवन आदि

 २. वृन्दावन - गोवर्धन, बरसाना, नन्दगाँव आदि

        अतः नन्दगाँव भी वृन्दावन के अन्तर्गत आता है। यहाँ की रमणीय स्थलियाँ, सघन वृक्षावली, मनोरम कुण्ड तथा गोचर भूमि सभी के मन को सहज लुभाती हैं। श्री महादेव जी ने माता यशोदा से प्रार्थना की -" हे ब्रजरानी! वृन्दावन में मैं पर्वत रूप में विराजमान हूँ आप जब गोकुल छोड़कर वृन्दावन आयें तो आप नन्दराय जी तथा श्री कृष्ण-बलराम के साथ मेरी पीठ पर आकर निवास करें।" श्री शिव विग्रहरूप पर्वत पर श्री नन्दमहाराज अपने भाईयों-उपनन्द, प्रतिनन्द, अभिनन्द और सुनन्द के साथ आकर यहाँ निवास करने लगे थे। यहीं स्थान  ब्रज में आज नन्दगाँव के नाम से प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण जी ने यहाँ अपनी अनेक बाल लीलायें संपन्न की हैं।

ब्रज चौरासी कोस में, चार धाम निज धाम। वृन्दावन अरु मधुपुरी, बरसाना नंदगाँव॥