मथुरा

भारतवर्ष में अयोध्या, मथुरा, काशी, काञ्ची, माया, अवन्ती, द्वारावती-ये मोक्ष प्रदाता सात पुरियाँ हैं। इन सभी पुरियों में मथुरा पुरी का विशेष महत्व है। क्यों न हो यहाँ पर स्वयं सच्चिदानन्द प्रभु श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया है। प्रभु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से रक्षित इस मथुरा पुरी का महत्व बैकुण्ठ से भी अधिक माना गया है, क्योंकि इस भूमि पर किसी भी प्रकार के प्रलय आदि विकारों का प्रभाव नहीं होता। मथुरा पुरी अति प्राचीन है। त्रेता युग में भगवान श्री राम के अनुज शत्रुघ्न जी द्वारा दैत्यराज मधु के पुत्र लवणासुर का संहार करके सभी मथुरावासियों को भयमुक्त किया। वहीं द्वापर युग में कंस के कारागार में श्री कृष्ण ने देवकी के गर्भ से प्रकट होकर इस नगर की महिमा को सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशित किया। श्री मद्‍भागवत के रचियता श्री व्यास जी का ब्रज से सम्बंध सर्वविदित है। श्री कृष्ण गंगा तीर्थ जो आज भी मथुरा में स्थित है, व्यास जी की तप स्थली रहा है। द्वापर में श्री कृष्ण की जन्मादि विविध लीलाओं की स्थली होने का गौरव भी इसे प्राप्त है। मथुरा नगरी में अनेक उतार-चढ़ाव आये परन्तु आज भी यमुना किनारे स्थित इस नगरी का सौन्दर्य, रमणीय वन, पतित पावनी यमुना जी के घाट एवं विभिन्न राजा और धनियों के महल और मन्दिर इस नगरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। इस भूमि का श्री कृष्ण जी के साथ शाश्वत सम्बंध इसीलिये भी अधिक है कि उनकी पटरानी श्री यमुना जी साक्षात कल-कल करती अपने दिव्य घाटों पर आज भी बह रही हैं।