बरसाना में दर्शनीय स्थल
सांकरी खोर
: ब्रह्म पर्वत और विष्णु पर्वत के मध्य संकरी गली को ही सांकरी खोर
कहते हैं। इस मार्ग से गोपियाँ दूध-दही बेचने जाया करती थीं। एक बार
श्री कृष्ण जी ने गोपियों को यहाँ रोक लिया और कर के रूप में दही-माखन
मांगने लगे। सखियों के आनाकानी करने पर श्रीकृष्ण एवं अन्य सखाओं ने
उनकी मटकी फ़ोड़कर सारा दूध-दही लूट लिया। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के
शुक्ला त्रियोदशी के दिन बूढ़ीलीला(मटकीफ़ोड़ लीला) होती है।
दानगढ : यह
ब्रह्म पर्वत के उत्तरी भाग में एवं सांकरी खोर की पश्चिम दिशा में है।
यहाँ पर श्री कृष्ण सखाओं के साथ श्री राधिका एवं अन्य सखियों
की प्रतीक्षा कर रहे थे। श्री राधा एवं अन्य सखियाँ सूर्य पूजा के बहाने
विविध द्रव्यों को लेकर वहाँ से गुजर रहीं थी। तब श्री कृष्ण जी ने कहा
आप यहाँ से जा रही हो आपको कर देना होगा। विशाखा सखी ने पूँछा- "तुम
कौन होते हो कर लेने वाले। कृष्ण जी बोले मुझे यहाँ राजा कन्दर्पदेव ने
कर लेने के लिये नियुक्त किया है। सभी सखियाँ बोलीं यहाँ की राजेश्वरी
तो श्री राधा रानी हैं। श्री राधा जी के कटाक्षरूपी बाणों से आपके राजा
कन्दर्प का सारा पराक्रम दूर हो जाता है। यहाँ पर दान बिहारी जी का
मन्दिर है।
मानगढ़ : एक
बार श्याम सुन्दर राधा जी से मिलने जा रहे थे, मार्ग में उन्हें पद्मा
मिली और उसने कृष्ण जी को चन्द्रावली के विरह के बारे में बताया। श्री
श्याम सुन्दर जी चन्द्रावली को सांत्वना देने चले गये। श्री राधा जी
श्यामसुन्दर के न आने के कारण व्याकुल हो गयीं और उन्होंने अपनी सखियों
को श्याम सुन्दर के बारे में पता करने को कहा। सखियों ने श्री राधा जी
को बताया कि श्याम सुन्दर तो चन्द्रावली सखी की कुञ्ज में हास-परिहास
कर रहे हैं। यह सुनकर श्रीराधाजी श्रीश्याम सुन्दर से मान कर बैठीं।
रसिक श्री कृष्ण ने बड़े कौशल से श्रीराधा जी का मान भंग किया।
रत्न कुण्ड
: कृष्णजी ने मुक्ता कुण्ड में मोती उगाये, जिन्हें नन्दराय जी ने
वृषभानु जी के यहाँ भेजा। इनको देखकर वृषभानु चिन्तित हो गये। राधा जी
ने उनकी चिन्ता को दूर करने के लिये अपनी माँ से मोती का हार लिया और
इस कुण्ड पर मोती की खेती कर दी। जिससे यहाँ विभिन्न प्रकार के मोती उग
आये।
विलासगढ़ : विष्णु पर्वत पर स्थित यह स्थान चिकसौली और ऊँचा गाँव से
घिरा हुआ है। यहाँ पर श्री राधा जी अपनी सखियों के साथ धूला खेलतीं
थीं। यहाँ विलास मन्दिर है। यहाँ श्री राधा-कृष्ण ने विविध प्रकार के
क्रीड़ा-विलास किये हैं।
भानुगढ़: बरसाने में भानुगढ़ पर ही श्री राधा रानी जी का मन्दिर स्थित है।
इसे वृषभानु जी का भवन कहते हैं। मन्दिर अत्यंत सुन्दर, कलात्मक बना हुआ है। राधाष्टमी पर यहाँ
विशेष दर्शन होते हैं।
जय जय बरसानों गाँव जहाँ राधारानी
राज रही।
पर्वत ऊपर महल मणिन कौ,
जागे आगे त्रिभुवन फ़ीकौ।
ब्रह्मा रूप धरै पर्वत कौ।
श्री चरनन कौ धाम, जहाँ राधारानी
राज रही॥
मोरकुटी :
यहाँ पर श्री राधा जी मय़ूरों को नृत्य सिखाती थीं। कभी-कभी श्याम
सुन्दर भी मोर का रूप धारण कर वहाँ पहुँच जाते थे और राधा रानी जी से
नृत्य सीखा करते। श्याम सुन्दर जान बूझ कर गलतियाँ करते और राधा जी उनको
डाँटती थीं, श्रीराधा रानी को नाराज होते हुए देख श्यामसुन्दर को बहुत
प्रसन्नता होती थीं।
"नाचत मोर संग स्याम, मुदित श्यामाहि
रिझावत ।
तसिय कोकिल अलापत, पपहिया देत सुर,
तैसोंइ मेघ गरज मृदंग बजावत ॥
तैसिय श्याम घटा निशि सी कारी,
तैसिहें दामिनी कौंधै दीप दिखावत ॥
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा रीझ
श्याम हँसि कण्ठ लगावत॥
गह्वर वन :
इस सघन वन को स्वयं श्री राधा रानी जी ने सुशोभित किया। यह बहुत ही रमणीय
स्थान है। यह श्री राधा जी एवं अन्य सखियों का नित्य विहार स्थल है। यहाँ
श्री राधा-सरोवर, रास मण्डल, शंख का चिह्न और गाय के स्तन का चिह्न
दर्शनीय है। रास मण्डल के पास मयूर सरोवर है। अनेक वैष्णव रसिक संतों
को यहाँ श्री किशोरी जू का साक्षात्कार हुआ है। महाप्रभु श्री
बल्लभाचार्य जी की यहाँ बैठक भी है।
कृष्ण कुण्ड
: चारों ओर से लता-पताओं, वृक्षों से घिरा हुआ यह सरोवर गह्वर वन की
शोभा है तथा अनेक वैषणवों के लिये श्रद्धा का स्थल है। पिया-प्रियतम ने
यहाँ जल केलि आदि लीलाएं की हैं।
चिकसौली :
श्रीराधा जी की अष्ट सखियों में अत्यंत प्रिय चित्रा सखी का यह
जन्म स्थान है। चित्रा सखी के पिता का नाम चतुर्गोप और माता का नाम
चर्चिता था। चित्रा सखी श्री राधा जी के नाना प्रकार के श्रंगार करने
में दक्ष, चित्रकला में योग्य तथा पशु-पक्षियों की भाषा समझने में
निपुण थीं।
दोहनी कुण्ड : यह गहवर वन के
समीप ही चिकसौली गाँव में स्थित हैं। इस स्थान पर महाराज वृषभानु जी की
लाखों गाय रहती थीं। एक बार श्री राधा जी की गौ दोहन की इच्छा हुई, वे
मटकी लेकर एक गाय का दूध दोहने लगीं। उसी समय श्रीकृष्ण भी वहाँ आ
पहुँचे और बोले - सखी! तोपे दूध दोहवौ नाय आवै है, ला मैं बताऊँ। दोनों
ने गाय के थन दोहना प्रारम्भ किया। तो श्यामसुन्दर ने ठिठोली करते
हुए दूध की धार राधा जी के मुख पर ऐसी मारी कि राधा जी का मुख दूध से
भर गया। यह सब देखकर सखियाँ हंसने लगीं।
आमें सामें बैठ दोऊ दोहत करत ठिठोर,
दूध धार मुखपर पड़त दृग भये चन्द्र चकोर।
पीलीपोखर :
यह बरसाना की उत्तर दिशा में है। पीलू के वृक्षॊं से घिरे इस वन में
श्रीराधा जी अपनी सखियों के साथ अनेक प्रकार की क्रीड़ा करती थीं। श्याम
सुन्दर जी भी गौचारण कराते हुए अपने सखाओं के साथ यहाँ पहुँच जाया करते
और श्री राधा जी से मिला करते थे। माना जाता है यहाँ श्री राधा जी ने
विवाह के पश्चात हल्दी से लिपे हाथ धोये थे जिससे सारा जल पीला हो गये।
अतः इसे पीली पोखर कहते हैं।
ऊँचा गाँव :
श्री राधा जी की अष्ट सखियों में सबसे प्रधान श्री ललिता सखी जी
का यह गाँव है। श्री ललिता सखी जी तो श्रीराधा-कृष्ण की निकुंज लीलाओं
की भी साक्षी हैं। श्रीराधाजी को अमित सुख प्रदान कराने वाली ललिता सखी
प्रिया-प्रियतम की विविध लीलाओं में सहगामी हैं। इनके नि:स्वार्थ प्रेम
के वशीभूत होने के कारण श्री युगल सरकार इन्हें हमेशा अपने साथ ही रखते
हैं। स्वयं भोलेनाथ शंकर जी ने भी गोपी भाव की दीक्षा इन्हीं से ली थी।
चित्र-विचित्र
शिला : एक समय सखियों ने प्रिया-प्रियतम का श्रंगार किया तथा ललिता
जी के साथ श्री श्याम सुन्दर के विवाह का आयोजन किया। उनके मेहंदी रचे
कर-कमल इस शिला पर टिके थे, जिसके चिह्न आज भी दर्शनीय हैं। सखियों
द्वारा यहाँ की गयी चित्रकारी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है।
रीठौरा
: श्री वृषभानु जी के ज्येष्ठ भ्राता श्री चन्द्रभानु गोपजी का यह
गाँव है। इन्हीं चन्द्रभानुजी की लाड़िली बेटी श्री चन्द्रावली जी हैं।
ये श्री कृष्ण जी की अनन्य प्रिया सखी हैं। श्री कृष्ण जी इनके प्रति
विशेष प्रेम रखते थे। यहाँ चन्द्रावली सरोवर तथा श्री बिट्ठलनाथ जी की
बैठक है।
डभारो
: यह श्री तुंगविद्या सखी जी का जन्मस्थल है।
संकेतवन
: बरसाना और नंदगाँव दोनों के बीच में संकेत वन स्थित है। श्री राधा जी
जावट से और श्री कृष्ण नंदगाँव से आकर यहाँ पर मिलते थे। वृन्दा देवी,
वीरा देवी और सुबल सखा किसी न किसी बहाने से संकेत के द्वारा यहाँ पर
प्रिया-प्रियतम का मिलन कराते थे। यहाँ पर संकेत बिहारी जी का मन्दिर,
रास मण्डल स्थल, झूला मण्डप आदि दर्शनीय हैं।
अन्य स्थल :
वृषभानु सरोवर, कीर्तिदा सरोवर, श्रीराधा सरोवर, ब्रजेश्वर महादेव,
शूरसरोवर, मयूर सरोवर, त्रिवेणी स्थल, सखी कूप, बल्देव स्थल आदि
दर्शनीय हैं।
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