काम्यवन में दर्शनीय स्थल

विमल कुण्ड : चंपक नगरी के राजा विमल की छ: हजार रानियों ने श्रीयाज्ञवल्य ऋषि की कृपा से अनेक कन्याओं को जन्म दिया। इन सभी कन्याओं ने पूर्व जन्म में श्री राम चन्द्र जी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी। इन सभी की पूर्व जन्म की अभिलाषा को पूर्ण करने के लिये भगवान श्री कृष्ण इन सभी राजकन्याओं को अपने साथ ब्रजमण्डल के कामवन ले आये। इन सभी कन्याओं की संख्या अनुसार कृष्ण जी ने उतने ही रूप धारण कर इन सभी के साथ रासलीला एवं क्रीड़ायें की, उस रास में इन विमलकुमारियों के आनन्द अश्रुओं की धारा से प्रपूरित यह कुण्ड विमल कुण्ड नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस कुण्ड में स्नान करने से पुष्करराज में सात बार स्नान करने के बराबर फ़ल की प्राप्ति होती है। इस कुण्ड के चारों ओर दाऊजी, सूर्यदेवजी, नीलकंठ महादेव, श्री गोवर्धन नाथ जी, श्री मदन मोहन जी एवं कामवन बिहारी, श्रीविमला देवी, श्रीमुरली मनोहर, श्री गंगा जी, श्री गोपाल जी आदि दर्शनीय हैं। इनके साथ ही भारत के अनेकों तीर्थ जैसे चार धाम यहाँ अवस्थित हैं।

चरणकुण्ड : श्रीप्रिया-प्रियतम जी एक बार सहस ही यहाँ आकर बैठ गये तथा अपने श्री चरणों से जल उलीझते रहे तथा अठखेलियाँ करते रहे तभी से यह स्थली ठाकुर जी के श्री चरणों की रज से अभिसिंचित होने के कारण चरण कुण्ड नाम से विख्यात हो गयी। इसके पास ही वैद्यनाथ महादेव जी, विष्णु सिंहासन, गरुड़ जी, चन्द्रेश्वर महादेव, बारह कूप, यज्ञ कुण्ड आदि दर्शनीय स्थल हैं।

धर्म कुण्ड : श्री नारायण भगवान स्वयं धर्म रूप में यहाँ विराजते हैं, तथा धर्म का प्रतिपादन करते हैं। यह तीर्थ अत्यंत शोभायमान है। भाद्रपद कृष्णाष्टमी को यहाँ स्नान का विशेष महत्व है। इसके पास ही, नर-नारायण कुण्ड, पंच पाण्डव कुण्ड, नील बराह, श्री हनुमान जी आदि दर्शनीय हैं।

मणिकर्णिका : इस स्थान पर विश्वनाथ भगवान श्री शंकर जी विराजमान हैं।

सेतुबन्ध कुण्ड : श्री कृष्ण ने यहाँ पर श्री राम के आवेश में गोपियों के कहने पर बन्दरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया था। अभी भी इस सरोवर में सेतु बन्ध के भग्‍नावशेष दर्शनीय हैं। कुण्ड के उत्तर में रामेश्वर महादेव जी दर्शनीय हैं। जो श्री कृष्ण के द्वारा प्रतिष्ठित हुए थे। कुण्ड के दक्षिण में उस पार एक टीले के रूप में लंका पुरी भी दर्शनीय हैं।

गयाकुण्ड : गया तीर्थ भी ब्रज मण्डल के इस स्थान पर रहकर कृष्ण जी की अराधना करते हैं। इसमें अगस्त कुण्ड भी एक साथ मिले हुए हैं। गया कुण्ड के दक्षिणी घाट का नाम अगस्त घाट है।

लुकलुक कुण्ड : गोचारण करते समय कभी श्री कृष्ण अपने सखाओं के खेलते हुए छोड़कर कुछ समय के लिए एकान्त में इस परम रमणीय स्थान पर गोपियों से मिले, वे उन ब्रज रमणीयों के साथ यहाँ पर लुका-छिपी(आँख मिचौली) की क्रीड़ायें करने लगे। श्री कृष्ण जी निकट ही पर्वत की एक कन्दरा में छिप गये, जिसे लुक-लुक गुफ़ा कहते हैं। सखियाँ चारों ओर कृष्ण जी को खोजने लगीं जब श्री कृष्ण जी नहीं मिले तो वे चिन्तित हो गयीं और कृष्ण जी का ध्यान करने लगीं, जहाँ पर बैठकर सखियाँ ध्यान कर रही थीं, वह स्थल ध्यान कुण्ड कहलाता है।

चरण पहाड़ी : श्री कृष्ण लुकलुक गुफ़ा में प्रवेश कर पहाड़ी के ऊपर प्रकट होकर बंशी बजाने लगे जिसकी धुन सुनकर सखियों का ध्यान टूटा और वे सब दौड़कर श्यामसुन्दर से मिलने एकत्र हो गयीं। बंशी की धुन को सुनकर पर्वत के पिघल जाने के कारण उसमें श्री कृष्ण के चरण चिह्न और गाय, बछड़ों, सखाओं के चरण चिह्न अंकित हो गये जो आज पाँच हजार वर्ष बाद भी स्पष्ट रूप से दर्शनीय हैं।

विहल कुण्ड :  चरण पहाड़ी के पास ही विहल कुण्ड और पंच सखा कुण्ड हैं। यहाँ पर श्रीकृष्ण की मुरली धुन को सुनकर सखियाँ प्रेम में विहल हो गयीं थीं। इसीलिए यह स्थान विहल कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पंच सखा कुण्डों के नाम रंगीला, छबीला, जकीला, मटीला और दतीला कुण्ड है।

फ़िसलनी शिला : कलावता ग्राम के पास में इन्द्रसेन पर्वत पर फ़िसलनी शिला विद्यमान है।  गोचारण करने के समय श्री कृष्ण सखाओं के साथ यहाँ फ़िसलने की क्रीड़ा करते थे। कभी कभी श्री राधा जी भी सखियों के साथ यहाँ लीलायें करती थीं।

व्योमासुर गुफ़ा : श्री कृष्ण जी ने यहीं पर कंस के द्वारा भेजे गये व्योमासुर का वध किया था। जब श्री कृष्ण जी व्योमासुर का वध कर रहे थे उस समय पृथ्वी काँपने लगीं। बल्देव जी ने अपने चरणों से पृथ्वी को दबाकर शांत कर दिया था। उन के चरणों का चिह्न आज भी दर्शानीय है। मेधावी मुनि ने यहाँ श्री कृष्ण की अराधना की थी, अत: इसे मेधावी मुनि की कन्दरा भी कहते हैं।

भोजन थाली : व्योमासुर का वध करके श्री कृष्ण जी ने अपने सखाओं के साथ यहाँ भोजन किया था। भोजन करने के स्थान पर अभी भी थाली, कटोरा आदि के चिह्न विद्यमान हैं। यहीं पर कृष्ण कुण्ड, और बाजन शिला दर्शनीय है। श्री शंकराचार्य जी को कृष्ण जी की ग्वाल गोष्टी का दर्शन यहीं हुआ था।

काम सरोवर : समस्त ब्रज गोपिकाओं के सभी कार्य अपने प्यारे श्यामसुन्दर को रिझाने के लिए ही होते थे। उनका प्रत्येक क्षण श्री कृष्ण के सुख के लिए ही समर्पित था। वे तो दही भी यह सोचकर बिलोती थीं कि उसका माखन श्यामसुन्दर ग्रहण करेंगे, दही बेचने भी यही सोचकर जातीं थीं कि कृष्ण उनका मार्ग रोकेंगे। वे तो बस पलकें बिछाये इंतजार करतीं थीं कि श्याम सुन्दर हमारे यहाँ आयें और हमारी सेवा स्वीकार करें। श्याम सुन्दर सखियों की सभी कामनाओं का सम्मान करते हुए अपनी लीलाएं करते थे। इस सरोवर में स्नान करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।

कामेश्वर महादेव : ब्रज के प्रमुख महादेवों में एक कामेश्वर महादेव कामां में उत्तर पूर्व क्षेत्र के रक्षण हैं। ये समस्त मनोकामना, अर्थ, मुक्ति प्रदान करने वाले हैं।

गोकुल चंद्रमाजी : गोकुल चन्द्रमा जी का विग्रह महावन की एक क्षत्राणि को यमुना महारानी की रज में प्राप्त हुआ था। उसने इन ठाकुर जी को श्रीमहाप्रभु बल्लभाचार्य जी को सेवा-पूजा के लिये सौंप दिया था। आचार्य प्रभु ने अपने सेवक श्रीनारायण दास ब्रह्मचारी को इनकी सेवा पूजा का अधिकार दे दिया। श्री ब्रहमचारी जी के गोलोकवास के पश्चात् गोकुल चन्द्रमा जी की सेवा श्रीबल्लभकुली सम्प्रदाय द्वारा की जा रही है। यह वल्लभकुल सम्प्रदाय के पंचम पीठ का प्रमुख स्थान एवं गद्दी स्थान है।

सामरी खेरा : श्री कृष्ण की प्रिय सखी सामरी सखी का यह गाँव है। यहाँ गोपाल कुण्ड, सूर्य कुण्ड, गोपाल मन्दिर तथा बिहारी जी का मन्दिर है।

आदिबद्री : यह स्थान चारों ओर वृक्षों से तथा, पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ अत्यंत रमणीय स्थल है। यह ब्रज का उत्तराखंड कहलाता है। यहाँ के दृश्य और सौंदर्य को देखकर बद्रीधाम की अनुभूति होती है। यहाँ पर बद्रीनाथ धाम, तृप्‍ति कुण्ड, यमुनोत्री, गंगोत्री, लक्ष्मण झूला, बूढ़े बद्री, हरिद्वार, हर की पौड़ी आदि स्थित हैं।

केदारनाथ : यहाँ श्‍वेत पर्वत पर शिवजी एवं पार्वती जी युगल रूप में विराज रहे हैं। यह ब्रज का केदारनाथ है। पर्वत के नीचे गौरी कुण्ड है।