मानसी गंगा

मानसी गंगा के सभी
घाटों का निर्माण जयपुर नरेश मान सिंह के पिता राजा भगवान दास ने कराया
था। मानसी गंगा का बहुत महत्व है। मानसी गंगा के प्राकट्य की तीन कथायें
प्रचलित हैं : - १. श्री कृष्ण ने गोपियों के कहने पर वृष हत्या के पाप
से मुक्त होने के लिये अपने मन से इसे प्रकट किया तथा एवं इसमें स्नान
कर पाप मुक्त हुए।
दूसरी कथा के
अनुसार एक बार श्री नन्दबाबा, यशोदा मैया सभी ब्रजवासियों सहित गंगा
स्नान करने के लिये यात्रा पर जा रहे थे। रात्रि को इन्होंने गोवर्धन
में विश्राम किया। कृष्ण ने सोचा सारे तीर्थ ब्रज में विद्यमान हैं, तो
इतनी दूर जाने की क्या आवश्यकता है। तो श्री कृष्ण ने भागीरथी गंगा का
मन में स्मरण किया और स्मरण करते ही गंगा जी वहाँ दीपावली के दिन प्रकट
हो गयीं। रात्रि में सभी ने दीपदान किया तथा स्नान किया। जब से
प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहाँ दीपावली पर दीपदान करते हैं एवं
स्नान करते हैं।
तीसरी कथा
के अनुसार श्रीकृष्ण जी की पटरानी यमुना जी ने अपनी बड़ी बहिन गंगा देवी
के ऊपर कृपा करने के लिये प्यारे श्री कृष्ण जी से प्रार्थना की। श्री
कृष्ण जी ने यमुना जी की प्रार्थना सुनकर उसी समय गंगा जी का आह्वान
किया और गोपियों के साथ जल बिहार आदि के द्वारा उन्हें कृतार्ध कर दिया।
मानसी गंगा पर दर्शनीय स्थल
श्री
हरि देव मंदिर : यह मानसी गंगा के दक्षिण किनारे पर स्थित है। ये
गिरिराज गोवर्धन के पूजनीय देव हैं। श्री कृष्ण ने एक स्वरुप से
गिरिधारी बनकर अपनी हथेली पर अपने दूसरे स्वरुप गिरिराज जी को धारण किया
था। और अपने एक स्वरूप से इनकी पूजा की थी।
ब्रह्म कुण्ड : गौवत्स एवं ग्वालवालों के अपहरण के अपराध से मुक्ति
पाने के लिये ब्रह्मा जी यहाँ श्री कृष्ण जी के सम्मुख आये। यहाँ
उन्होंने श्री कृष्ण जी का पवित्र मंत्रो के साथ अभिषेक किया एवं उनकी
स्तुति की। श्री कृष्ण जी के अभिषेक का पवित्र जल ही ब्रह्म कुण्ड है।
मनसा
देवी : ब्रह्म कुण्ड के ऊपर ही मानसी गंगा के किनारे मनसा देवी का
मंदिर है। ये मनसा देवी और कोई नहीं स्वयं श्री कृष्ण जी की योगमाया देवी
हैं।
गौ
घाट : श्री कृष्ण इस घाट पर गौओं एवं बछड़ों को जल पिलाया करते थे।
चकलेश्वर महादेव: मानसी गंगा के उत्तर में चकलेश्वर महादेव जी
विराजमान हैं। इन्द्र के द्वारा घोर बारिश के समय इन महादेव ने अपने
त्रिशूल को चक्र के समान धारण कर गिरिराज जी एवं समस्त ब्रजवसियों की
रक्षा की थी। कुछ भक्तों का कहना है कि इन महादेव जी की प्रार्थना से
यहाँ पर सुदर्शन चक्र ने गिरिराज गोवर्धन एवं ब्रजवासियों की रक्षा की
थी। अतः इनका नाम चकलेश्वर महादेव पड़ा।
मुखार
बिंद : मानसी गंगा के उत्तरी तट पर गोवर्धन जी का मुखारबिंद है। यहाँ
गोवर्धन जी का दर्शन बैठी हुई गाय के समान है, जिसका पिछला भाग पूँछरी
है। उन्होंने अपनी गर्दन को घुमा कर मुख मंडल को अपने पेट के निकट रखा
है। उनके दोनों नेत्र राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड हैं। यहाँ गिरिराज जी
के मुखार बिंद के बहुत सुन्दर दर्शन होते हैं एवं प्रतिदिन इनका अभिषेक
पूजन और अन्नकूट का आयोजन होता है।
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