नन्दगाँव के दर्शनीय स्थल
नन्दभवन
: यह नन्दगाँव का प्रमुख मन्दिर है। यह नन्दीश्वर पर्वत पर स्थित
है। इसमें नन्दबाबा माँ यशोदा, रोहिणी एवं श्री कृष्ण-बल्देव के साथ
विराजमान हैं। यहाँ सबके अलग-अलग शयन कक्ष हैं। यहीं पर श्री
कृष्ण-बलराम ने अपनी बाल एवं किशोर अवस्था तक की बहुत सी लीलायें की
हैं।
नन्दकुण्ड : नन्दभवन से थोड़ी दूर दक्षिण में नन्द कुण्ड है।
महाराज नन्द प्रातः काल यहाँ स्नान, संध्या वंदन आदि करते थे। कभी-कभी
कृष्ण और बलराम को अपने कन्धों पर बिठाकर लाते और उन्हें भी यहाँ स्नान
कराते थे। कुण्ड के तट पर स्थित मन्दिर में नन्दबाबा की गोद में बैठे हुए श्री कृष्ण एवं बलराम जी के मनोहर दर्शन हैं।
नन्दबैठक
: ब्रजेश्वर महारज नन्दराय जी यहाँ अपने सभी परिजनों, वृद्ध गोपों
तथा पुरोहित आदि के साथ समय समय पर बैठकर श्री कृष्ण-बलराम के कल्याण
के लिए परामर्श किया करते थे।
यशोदा
कुण्ड : मैया यशोदा प्रतिदिन यहाँ स्नान करने आतीं थीं। माँ यशोदा
के साथ कभी-कभी कृष्ण-बलराम भी स्नान करने आ जाते थे और उन दोनों की जल
क्रीड़ाएं देखकर यशोदा जी बहुत प्रसन्न्द होती थीं। कुण्ड के तट पर
नृसिंह जी का मन्दिर है, वह नित्य नृसिंह देव से लाला कन्हैया के कुशल
मंगल की प्रार्थना करती थीं। इसी के पास ही एक प्राचीन गुफ़ा है जिसमें
अनेक संत महात्माऒं ने तप किया और ठाकुर जी की दिव्य लीलाओं के दर्शन
किये।
हाऊ-विलाऊ:
"दूर खेलन मत जाओ लाल यहाँ हाऊ आये हैं,
हँस कर पूछत कान्ह मैया यह किनै पठाये हैं॥"
यशोदा कुण्ड के
पश्चिम तट पर सखाओं के साथ कृष्णजी की बाल लीलाऒं का यह स्थान है। यहाँ
श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ खेलने आया करते थे और खेलने में इतने
तनमय हो जाते कि उन्हें भोजन करने का भी स्मरण नहीं रहता। मैया यशोदा
कृष्ण-बलराम को बुलाने के लिए रोहिणी जी को भेजती, किन्तु जब वे नहीं
आते तो स्वयं जाती और नाना प्रकार से डराते हुए कहती - लाला! जल्दी आजा
हऊआ आ जायेगौ।" तो कन्हैया डर कर मैया की गोद में आ जाया करते।
चरण पहाड़ी
: नन्दगाँव के पश्चिम में चरण पहाड़ी स्थित है। श्री कृष्ण ने यहाँ
लाखों गायों को एकत्रित करने के लिए गौचारण के समय इस पहाड़ी पर
बंशी वादन किया था। श्री कृष्ण जी की मधुर बंशी को सुनकर यह पहाड़ी पिघल
गयी तथा कृष्ण के चरण चिह्न यहाँ पर बन गये।
वृन्दा
देवी : चरण पहाड़ी से थोड़ी ही दूर वृन्दा देवी का मन्दिर है। श्री
कृष्ण की प्रकट लीला के समय वृन्दा देवी यहाँ निवास किया करती थीं। यहीं
से वे संकेत आदि कुंजों में श्री राधा-कृष्ण का मिलन करातीं थीं। यहाँ
वृन्दा देवी कुण्ड भी है। वृन्दा देवी ही श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं की
अधिष्ठात्री वन देवी हैं। वृन्दा देवी की कृपा से ही श्री राधा-कृष्ण
की लीलाओं में प्रवेश लिया जा सकता है।
पावन
सरोवर : यह सरोवर नंदगाँव से काम्यवन जाने वाले रास्ते पर स्थित
है। इस सरोवर का निर्माण विशाखा सखी के पिता पावन गोप ने किया था,
इसीलिए इसका नाम पावन सरोवर है। सखाओं के साथ गोचारण से लौटते समय
कृष्ण जी अपनी गायों को इस सरोवर में पानी पिलाते थे।
धोवनी
कुण्ड: पावन सरोवर के पास ही यह कुण्ड स्थित है। इस कुण्ड में दूध-दही के
बर्तन धोये जाते थे इसीलिए इसका नाम धोवनी कुण्ड पड़ गया।
मुक्ता (मोती)
कुण्ड : जब वृषभानु जी राधा जी की सगाई श्री कृष्ण जी के साथ करने
नन्दगाँव पहुंचे तो साथ में विविध प्रकार के वस्त्र, अलंकार, आभूषण,
रत्न, मोती आदि अपने साथ लाये। इन सब को देखकर नन्दराय जी एवं यशोदा जी
चिन्तित हुई और सोचने लगीं कि इसके बदले हम बरसाना क्या भेजें, हमारे
पास तो इतने रत्न नहीं है। श्री कृष्ण जी ने माँ यशोदा की चिन्ता को
दूर करने के लिये यहीं पर रत्नों की खेती की और यहाँ नाना प्रकार के
रत्न उग आये थे।
ललिता
कुण्ड : यह वह स्थान है जहाँ ललिता सखी जी श्रीराधा रानी को किसी न
किसी बहाने से बुलाकर श्रीश्याम सुन्दर से मिलाया करती थीं।
टेर
कदम्ब : नन्दगाँव एवं जावट ग्राम के बीच में यह स्थित है। जब
श्रीकृष्ण जी गोचारण कराने जाते थे, तो कदम्ब वृक्ष के ऊपर बैठकर मधुर
बंशी बजाकर अपनी गायों को टेरते थे। टेरने का मतलब होता है पुकारना अथवा
बुलाना। सभी गाय कन्हैया की बंशी सुनकर यहाँ एकत्र हो जाती थीं। अतः यह
स्थान टेर कदम्ब कहलाता है। आज भी गोपाष्टमी के दिन नन्दगाँव के
गोस्वामी परम्परागत इस उत्सव को मनाते चले आ रहे हैं।
आसेश्वर
महादेव : यहाँ आसेश्वर महादेव का मन्दिर है।
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